शब्द सारे थक गए हैं
अर्थ बौना हो गया है
आज मंचों पर कहीं भी
गंध गीतों की न मिलती,
शब्द सुनकर किसी उर में
एक कलिका तक न खिलती,
भाव बासी सलवटों का
अब बिछौना हो गया है
चुटकुलों का दौर चलता
बेवजह की बात होती,
मसखरी के बीच कोरी
कहकहों की रात होती,
लोग हँसते बिना मतलब
कथ्य पौना हो गया है
बेरुखी बेलौस लगतीं
पंक्तियाँ कितनी कमीनी,
कहीं मिलती है नहीं अब
कहन-शैली भावभीनी,
बुरी नजरें लगी सबको
क्या दिठौना खो गया है।
गीत की दुलहन नहीं अब
पहनकर पायल चहकती,
छंद की चंपा कली अब
कहाँ मंचों पर महकती,
लग रहा ज्यों गीतिका का
आज गौना हो गया है।